एक दशक पहले मध्य प्रदेश में भर्ती परीक्षाओं को लेकर व्यापम (व्यवसायिक परीक्षा मंडल) घोटाले के खुलासे ने देशभर में सुर्खियां बटोरी थीं। तो अब उत्तर प्रदेश के विधानमंडल के दोनों सदनों में हुई भर्तियों को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए साल 2020-2021 में विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं।
भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की नई इबारत रचने वाले इस भर्ती घोटाले में विज्ञापन में घोषित पदों से अधिक भर्तियां कर ली गईं। चहेतों को नौकरी देने के लिए गलत ढंग से अंकों में बदलाव किए गए। भर्ती परीक्षा कराने वाली एजेंसियों के निदेशकों के परिवार के सदस्य तक परीक्षा में पास हो गए।
विधानसभा-विधानपरिषद सचिवालय के अफसरों के अलावा शासन के कई अफसरों के परिजनों-नजदीकियों को नौकरी मिल गई। पर मेहनत करके प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं के हिस्से मायूसी ही आई।
विज्ञापन जारी होने के बाद भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता हो गई छूमंतर
7 दिसंबर, 2020 को भर्तियों का विज्ञापन जारी होता है। 24 जनवरी, 2021 को प्री परीक्षा, 27 फरवरी को मुख्य परीक्षा हुई। इसके अगले ही महीने 14 मार्च, 2021 को टाइपिंग का टेस्ट हो गया। पारदर्शिता को किस तरह धता बताया गया इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि नतीजों को सार्वजनिक तौर से घोषित नहीं किया गया।
बस हर अभ्यर्थी अपने मोबाइल के जरिए सिर्फ और सिर्फ अपना नतीजा ही जान पाया कि वो पास हुआ या फेल। एक याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में 29 जुलाई, 2021 को दिए गए शपथपत्र में विधानसभा सचिवालय के द्वारा बताया गया कि नतीजों को विधानभवन के भीतर ही दीवार पर चस्पा कर दिया गया था।
गौर करने की बात है कि इस जगह तक कोई आम शख्स पहुंच ही नहीं सकता। यहां इंट्री के लिए बाकायदा पास की जरूरत होती है। हालांकि ये आज तक नहीं बताया जा सका कि ये नतीजे किस तारीख को घोषित किए गए थे।
घोषित पदों से अधिक भर्ती कर लिए गए, टाइपिंग परीक्षा में जमकर खेल हुआ
किसी भी भर्ती का सामान्य नियम है कि विज्ञापन से इतर पद और जरूरी योग्यता का मानक बदले नहीं जा सकते। यूपी विधानमंडल के भीतर हुई भर्तियों के विज्ञापन में जिक्र किया गया था कि सहायक समीक्षा अधिकारी (ARO) के 53 पदों के लिए भर्ती होनी है, जबकि 56 लोगों को भर्ती कर दिया गया।
सबसे दिलचस्प खेल हुआ टाइपिंग टेस्ट में। इसके लिए 125 शब्दों को टाइप करना था। दस्तावेजों से जाहिर है कि कई अभ्यर्थियों को दो सौ से ज्यादा मार्क्स दे दिए गए। मसलन, संजीव कुमार की मूल कॉपी में 37 शब्द टाइप हो सके थे, जिनमें से 19 सही और 18 गलत थे। लेकिन बाद में संजीव कुमार के शब्दों की संख्या 157 दिखा दी गई। जिनमें से 155 सही और दो गलत बताए गए।
कमल कैंथोला ने मूल कॉपी में 58 शब्द ही टाइप किए जिनमें से 34 सही और 24 गलत थे। पर बाद में इनकी शब्द संख्या 155 दिखाई गई, जिसमें से 152 को सही बताया गया। अशोक कुमार महज 6 शब्द ही टाइप कर सके। जिनमें से 4 सही और 2 गलत थे। पर इनके शब्दों की संख्या 136 दिखा दी गई, जिनमें से 133 सही बताए गए।
जाहिर सी बात है कि कुल जितने शब्द नहीं लिखने थे उससे कहीं अधिक के मार्क्स के दे दिए गए। सिर्फ इसलिए जिससे अंतिम नतीजे में इनकी मेरिट ऊपर हो जाए।
विधानपरिषद में हुई भर्तियों को तो गोपनीयता की दलील देकर पर्दे में ही छिपा लिया गया
जो अभ्यर्थी परीक्षा में सफल नहीं हुए उन्हें तब हैरानी हुई जब उनसे अयोग्य लोग अंतिम परिणाम में चयनित हो गए। इसके बाद शुरू हुई अदालती कवायदों से विधानसभा सचिवालय में हुई हेराफेरी का तो खुलासा हो गया। लेकिन विधान परिषद सचिवालय में जो 100 भर्तियां की गईं। उनके बारे में स्पष्ट तौर से कोई जानकारी भी नहीं सामने आ सकी।
व्यापम की तर्ज पर यूपी विधानसभा-विधानपरिषद में भर्ती घोटाला:ताकत-सत्ता-रसूख के बल पर नियमों को धता बताकर चहेतों को बांट दी गई नौकरियां
लखनऊएक घंटा पहलेलेखक: ज्ञानेंद्र कुमार शुक्ला
एक दशक पहले मध्य प्रदेश में भर्ती परीक्षाओं को लेकर व्यापम (व्यवसायिक परीक्षा मंडल) घोटाले के खुलासे ने देशभर में सुर्खियां बटोरी थीं। तो अब उत्तर प्रदेश के विधानमंडल के दोनों सदनों में हुई भर्तियों को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इस घोटाले की गंभीरता को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए साल 2020-2021 में विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं।
भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार की नई इबारत रचने वाले इस भर्ती घोटाले में विज्ञापन में घोषित पदों से अधिक भर्तियां कर ली गईं। चहेतों को नौकरी देने के लिए गलत ढंग से अंकों में बदलाव किए गए। भर्ती परीक्षा कराने वाली एजेंसियों के निदेशकों के परिवार के सदस्य तक परीक्षा में पास हो गए।
विधानसभा-विधानपरिषद सचिवालय के अफसरों के अलावा शासन के कई अफसरों के परिजनों-नजदीकियों को नौकरी मिल गई। पर मेहनत करके प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं के हिस्से मायूसी ही आई। आइए जानते हैं भर्ती की इस महा-हेराफेरी के बारे में...
विज्ञापन जारी होने के बाद भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता हो गई छूमंतर
हाईकोर्ट ने सवाल किया तो बताया गया कि रिजल्ट विधानसभा के नोटिस बोर्ड पर चस्पा किया गया था।
हाईकोर्ट ने सवाल किया तो बताया गया कि रिजल्ट विधानसभा के नोटिस बोर्ड पर चस्पा किया गया था।
7 दिसंबर, 2020 को भर्तियों का विज्ञापन जारी होता है। 24 जनवरी, 2021 को प्री परीक्षा, 27 फरवरी को मुख्य परीक्षा हुई। इसके अगले ही महीने 14 मार्च, 2021 को टाइपिंग का टेस्ट हो गया। पारदर्शिता को किस तरह धता बताया गया इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि नतीजों को सार्वजनिक तौर से घोषित नहीं किया गया।
बस हर अभ्यर्थी अपने मोबाइल के जरिए सिर्फ और सिर्फ अपना नतीजा ही जान पाया कि वो पास हुआ या फेल। एक याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में 29 जुलाई, 2021 को दिए गए शपथपत्र में विधानसभा सचिवालय के द्वारा बताया गया कि नतीजों को विधानभवन के भीतर ही दीवार पर चस्पा कर दिया गया था।
गौर करने की बात है कि इस जगह तक कोई आम शख्स पहुंच ही नहीं सकता। यहां इंट्री के लिए बाकायदा पास की जरूरत होती है। हालांकि ये आज तक नहीं बताया जा सका कि ये नतीजे किस तारीख को घोषित किए गए थे।
घोषित पदों से अधिक भर्ती कर लिए गए, टाइपिंग परीक्षा में जमकर खेल हुआ
यह ARO का रिजल्ट है। चेहेतों को जमकर नंबर दिए गए।
यह ARO का रिजल्ट है। चेहेतों को जमकर नंबर दिए गए।
किसी भी भर्ती का सामान्य नियम है कि विज्ञापन से इतर पद और जरूरी योग्यता का मानक बदले नहीं जा सकते। यूपी विधानमंडल के भीतर हुई भर्तियों के विज्ञापन में जिक्र किया गया था कि सहायक समीक्षा अधिकारी (ARO) के 53 पदों के लिए भर्ती होनी है, जबकि 56 लोगों को भर्ती कर दिया गया।
सबसे दिलचस्प खेल हुआ टाइपिंग टेस्ट में। इसके लिए 125 शब्दों को टाइप करना था। दस्तावेजों से जाहिर है कि कई अभ्यर्थियों को दो सौ से ज्यादा मार्क्स दे दिए गए। मसलन, संजीव कुमार की मूल कॉपी में 37 शब्द टाइप हो सके थे, जिनमें से 19 सही और 18 गलत थे। लेकिन बाद में संजीव कुमार के शब्दों की संख्या 157 दिखा दी गई। जिनमें से 155 सही और दो गलत बताए गए।
यह कमल कैंथोला की कॉपी है। कमल ने 58 शब्द ही टाइप किए, 34 सही थे। पर रिजल्ट में 152 सही बताए गए हैॆ।
यह कमल कैंथोला की कॉपी है। कमल ने 58 शब्द ही टाइप किए, 34 सही थे। पर रिजल्ट में 152 सही बताए गए हैॆ।
कमल कैंथोला ने मूल कॉपी में 58 शब्द ही टाइप किए जिनमें से 34 सही और 24 गलत थे। पर बाद में इनकी शब्द संख्या 155 दिखाई गई, जिसमें से 152 को सही बताया गया। अशोक कुमार महज 6 शब्द ही टाइप कर सके। जिनमें से 4 सही और 2 गलत थे। पर इनके शब्दों की संख्या 136 दिखा दी गई, जिनमें से 133 सही बताए गए।
जाहिर सी बात है कि कुल जितने शब्द नहीं लिखने थे उससे कहीं अधिक के मार्क्स के दे दिए गए। सिर्फ इसलिए जिससे अंतिम नतीजे में इनकी मेरिट ऊपर हो जाए।
विधानपरिषद में हुई भर्तियों को तो गोपनीयता की दलील देकर पर्दे में ही छिपा लिया गया
भर्ती के लिए 7 दिसंबर 2020 को विज्ञापन जारी किया गया था।
भर्ती के लिए 7 दिसंबर 2020 को विज्ञापन जारी किया गया था।
जो अभ्यर्थी परीक्षा में सफल नहीं हुए उन्हें तब हैरानी हुई जब उनसे अयोग्य लोग अंतिम परिणाम में चयनित हो गए। इसके बाद शुरू हुई अदालती कवायदों से विधानसभा सचिवालय में हुई हेराफेरी का तो खुलासा हो गया। लेकिन विधान परिषद सचिवालय में जो 100 भर्तियां की गईं। उनके बारे में स्पष्ट तौर से कोई जानकारी भी नहीं सामने आ सकी।
भर्ती विज्ञापन में पदों की संख्या के बारे में जानकारी दी गई थी।
भर्ती विज्ञापन में पदों की संख्या के बारे में जानकारी दी गई थी।
आम अभ्यर्थियों को पता ही नहीं चल सका कि कैसे और किसकी भर्ती हो गई। गोपनीयता का हवाला देकर कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया गया। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक विधान परिषद के तत्कालीन सभापति रमेश यादव का कार्यकाल 30 जनवरी 2021 को खत्म हो रहा था। तमाम नियमों और परीक्षा के शेड्यूल में तब्दीली करके पूरी कोशिश की गई कि सभी भर्तियां उनके कार्यकाल के बाकी रहते ही संपन्न हो जाएं।
महज एक साल पुरानी कंपनी को परीक्षा कराने का काम मिल गया
यूं तो विधानसभा सचिवालय में परीक्षा कराने का काम केन्द्रीय नोडल एजेंसी बेसिल (ब्राडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड) को दिया गया था। पर इसने सारा काम आऊटसोर्स कर दिया। जिन कंपनियों को जिम्मा दिया गया उनमें से एक कंपनी को तो परीक्षा कराने का तजुर्बा ही नहीं था, एक कंपनी की साख ही दागदार थी।
परीक्षा कराने वाली छात्रशक्ति इन्फो सल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड , 8 मार्च, 2019 को एक लाख के पेडअप कैपिटेल के साथ बनाया गया और बनने के अगले ही साल इसे विधानसभा सचिवालय की भर्तियों का अहम जिम्मा दे दिया गया।
दागदार कंपनी को दे दिया गया परीक्षा कराने का जिम्मा
परीक्षा कराने वाली टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग प्राइवेट लिमिटेड के दामन पर घोटाले के दाग थे। इसके तीन निदेशक साल 2018 में ग्राम पंचायत अधिकारियों की भर्ती में घपले के खुलासे पर एसआईटी द्वारा लखनऊ ग्रामीण थाने में दर्ज मुकदमे ( अपराध संख्या 2/2021) में जेल भेजे गए थे।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक इस दौरान पूछताछ में इन सभी ने यूपी विधानमंडल सचिवालय की भर्तियों में होने वाली गड़बड़ियों के बावत भी जुबान खोली थी, लेकिन मामला उच्च पदस्थ लोगों से जुड़ा था लिहाजा पुलिस ने उस पहलू पर चुप्पी साधकर सारा फोकस अपने मुकदमे पर ही कर दिया।
खुद हाईकोर्ट ने दोनों कंपनियों की निष्ठा को संदिग्ध मानते हुए राज्य सरकार को सख्त आदेश दिए थे कि इन दोनों कंपनियों को भविष्य में भर्ती संबंधी कोई कार्य न दिए जाएं।
परीक्षा कराने वाली कंपनी के निदेशकों के परिजन परीक्षा में शामिल होकर नौकरी पा गए
परीक्षा कराने वाली एजेंसियों के लिए सख्त नियम होते हैं कि उनकी कंपनी से नजदीक का रिश्ता रखने वाला कोई भी शख्स संबंधित परीक्षा में शामिल नहीं होगा। लेकिन टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक सत्यपाल सिंह के सगे भाई संजीव कुमार (1000050934) परीक्षा में शामिल हुए और नौकरी पा गए।
एक और निदेशक रामबीर सिंह की पत्नी के भाई कमल कैंथोला (रोल नंबर-100005014) ARO बन गए। रामबीर की भतीजी भी पास होकर नौकरी के लिए सेलेक्ट हो गईं। परीक्षा कराने वाली कंपनी राभव के निदेशक आरपी सिंह यादव की पत्नी भावना उर्फ अनिता भी उत्तीर्ण हो गईं। मुरादाबाद के दो सगे भाई इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए। संजीव कुमार का चयन तो सहायक समीक्षा अधिकारी और समीक्षा अधिकारी दोनों ही पदों के लिए हो गया।
फिलहाल तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित और विधानपरिषद के सभापति रमेश यादव के कार्यकाल में हुई तकरीबन दो सौ भर्तियों की पड़ताल अब देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी करेगी। इस जांच से भर्ती के नाम पर नियम-कायदे की धज्जियां उड़ाकर चहेतों को नौकरी बांट देने वाले रसूखदारों पर कानून का शिंकजा कसने के उम्मीद बलवती हुई है।