गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण शवदाह करने वालों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जिले के छह श्मशान घाट पानी में समा गए हैं और दो पर ही शवदाह हो रहा है। मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए घुटने भर पानी में खड़े होकर पांच घंटे तो वहीं हरिश्चंद्र घाट पर गलियों में शवदाह की जगह कम होने के कारण ढाई से तीन घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। अंतिम संस्कार के लिए अब दो से तीन गुना ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है।
शहर में मणिकर्णिका, हरिश्चंद्र, राजघाट, डोमरी, सरायमोहाना, गढ़वाघाट, सिपहिया घाट और रमना पर शवदाह किया जाता है। गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण राजघाट, डोमरी, सरायमोहाना, गढ़वाघाट, सिपहिया घाट और रमना का शवदाह स्थल डूब गया है। मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर ही शवदाह किया जा रहा है।
मणिकर्णिका घाट पर बाहर से आने वाले शवयात्रियों को घुटने भर पानी में खड़े होकर पांच-पांच घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा है। गंगा के बढ़ते जलस्तर के चलते घाट पर बाढ़ का पानी भर गया है। इससे न सिर्फ अंतिम संस्कार की प्रक्रिया बाधित हो रही है, बल्कि मौके पर मौजूद लकड़ी विक्रेता और नाविक भी मनमाने दाम वसूल रहे हैं।
गंगा का पानी सतुआ बाबा आश्रम तक पहुंच चुका है, जिससे शवों को घाट तक ले जाने के लिए गलियों से नाव का सहारा लेना पड़ रहा है। वहीं, एक बार में केवल पांच ही परिजनों को शव के साथ जाने दिया जा रहा है। इससे यात्री चार से पांच घंटे तक पानी में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
आम दिनों में 5 हजार, अब खर्च 15 हजार तक
मणिकर्णिका घाट पर शवदाह में उपयोग होने वाली लकड़ी का दाम आम दिनों में 600 से 700 रुपये प्रति मन होता था, लेकिन बाढ़ के बाद लकड़ी व्यापारी अब 1000 से 1200 रुपये प्रति मन वसूल रहे हैं। एक सामान्य शवदाह का खर्च जहां पहले 5000 रुपये के आसपास आता था, अब वही 12 से 15 हजार तक पहुंच चुका है।