Bihar Election : बिहार चुनाव से पहले 'वोट चोरी' के आरोपों से उठते सवाल और निर्वाचन आयोग के जवाब

Vishal Dubey
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भारत में चुनाव प्रक्रिया पर लोगों का भरोसा डगमगा रहा है या इसके पीछे राजनीति है?

सात अगस्त को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ़्रेंस के बाद कई लोगों के मन में यह सवाल है.

राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में 'वोट चोरी' का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग पर सत्तारूढ़ दल बीजेपी के साथ सांठगांठ की बात कही थी. हालांकि, चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को सिरे से ख़ारिज किया है.

राहुल गांधी इस मुद्दे को सड़क पर भी उठा रहे हैं और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के साथ 'वोटर अधिकार यात्रा' निकाल रहे हैं. वहीं, भारतीय जनता पार्टी इसे कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की हताशा वाली राजनीति कह रही है.

जिस दिन बिहार के सासाराम से 'वोटर अधिकार यात्रा' शुरू हुई थी, उसी दिन चुनाव आयोग ने भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी. लेकिन इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस के बाद भी चुनाव आयोग आलोचकों के निशाने पर है.

सवाल हैं कि क्या केंद्र सरकार इन आरोपों के बाद किसी तरह बैकफ़ुट पर दिखती है? चुनाव आयोग अगर बचाव करे तो क्या उसे हर बार पक्षपात के तौर पर ही देखा जाएगा? और चुनाव आयोग राहुल गांधी से शपथ पत्र लेने की मांग पर क्यों अड़ा हुआ है?

बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सब मुद्दों पर चर्चा की.

इन सवालों पर चर्चा के लिए इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ब्यूरो चीफ़ रितिका चोपड़ा और भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा शामिल हुए.


इस साल जून के महीने में राहुल गांधी ने राष्ट्रीय अख़बारों में एक लेख लिखा. इस लेख में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को 'मैच फ़िक्सिंग' कहा था.

अब बिहार में एसआईआर की ड्राफ़्ट सूची आने के बाद विपक्षी दल इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं और सड़क पर उतरे हैं.

एसआईआर पर अशोक लवासा बताते हैं, "सबसे पहले उत्तेजना का कारण बिहार विधानसभा चुनाव है. चुनाव से पहले स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (एसआईआर) जैसी बड़ी प्रक्रिया अपनाई गई है. इससे लोगों को संशय हुआ है. दूसरा कारण है कि 2003 के रिवीज़न में 'प्रिज़म्प्शन ऑफ़ सिटिज़नशिप' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया था."

सासाराम में राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि बिहार में एसआईआर करके नए वोटरों को जोड़कर और योग्य लोगों के नाम काटकर ये (बीजेपी-आरएसएस) बिहार का चुनाव चोरी करना चाहते हैं.

जबकि चुनाव आयोग का तर्क है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों को दूर करने के लिए एसआईआर की प्रक्रिया अपनाई जा रही है.

क्या दोनों पक्षों के बयानों से लोगों के मन में भ्रम पैदा नहीं होगा?

इस सवाल के जवाब में अशोक लवासा का कहना है कि इस बार प्रक्रिया काफ़ी जटिल बना दी गई है और इसके लिए लोगों को पर्याप्त समय नहीं दिया गया है.

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